लेखनी कहानी -06-Sep-2022# क्या यही प्यार है # उपन्यास लेखन प्रतियोगिता# भाग(16))
गतांक से आगे:-
सरदार ने जब मशाल की रोशनी चंचला के मुख की तरफ की तो सन्न रह गया और बोला,"ये क्या ? बिटिया किसके नाम का सिंदूर मांग मे भरी हो।"
"हां पिता जी आप की बेटी अब किसी की अमानत हो चुकी है ।मै राजकुमार सूरजसेन की ब्याहता हूं कल रात ही राजकुमार ने मेरे साथ मंदिर मे गंधर्व विवाह किया है ।" चंचला परिणाम की परवाह किए बगैर एक ही सांस मे सब बोल गयी ।
सरदार धर्म सिंह एक दम आग बबूला हो गया और उसे चोटी से पकड़ कर जमीन पर पटक दिया और बोला,"करमजली फिर काहे इस कबीले मे मुंह काला करके आई है ।जा अपने पति के पास वापस चली जा।"
चंचला जोर से रोने लगी और गिड़गिड़ाते हुए अपने पिता के पांव पकड़ कर बोली,"बापू जैसे मे पाक साफ कबीले से गयी थी वैसी ही पाक साफ लौटी हूं । मुझे माफ कर दो बापू मैंने राजकुमार को बहुत समझाया पर वो माने ही नही और बोले,"तुम्हें भगाकर नही ले जा रहा । विवाह करके ले जा रहा हूं।"
बेटी को इस तरह बिलखते देखकर सरदार का मन पसीज गया और बोला,"अरी करमजली यहां आने से पहले एक बार तो सोच लेती कि जो काम तू करके जा रही है क्या कबीला तुझे उसकी इजाजत देगा।कभी नही कालू ये नही देखेगा सामने वाला राजा है या महाराजा जो भी तेरे करीब आयेगा वो उसकी गर्दन उतार देगा।"
चंचला लगातार रोये जा रही थी बोली,"बापू इसमे मेरी क्या गलती है मुझे ये सही लगा कि राजकुमार मुझे ब्याह कर ले जा रहे है भगाकर नही तो उस समय मुझे उनके साथ विवाह करना ही सही लगा। फिर बापू मै कालू को पसंद ही नही करती तो इससे विवाह करती तो ये भी तो पाप ही होता ना ।"
सरदार थोड़ा नरम पड़ गये थे बेटी के तर्क उसे उचित ही लग रहे थे लेकिन फिर और कबीले वालों की सोच कर मन कांप जाता था । क्यों कि एक बार ऐसे ही कबीले की एक लड़की ने बाहर के एक शख्स से विवाह कर लिया था तो सारे कबीले के सामने उस लड़के को मौत के घाट उतार दिया था ।और उस लड़की को भी । तब सरदार धर्म सिंह ने इन बातों में मौन स्वीकृति दी थी।अब उसी की बेटी यही काम कर आयी थी तो क्या कबीले वाले उस पर उंगली ना उठाएंगे पक्षपात करने की।और अब की बार तो लड़का भी कोई साधारण मानव नही इस रियासत का राजकुमार था ।वो बड़े धर्मसंकट में फंस गया था।वह बोला,"बिटिया जब मै दूसरे की बेटी जब यही काम करके आयी तो मैंने उसे सजा दी तो तुम्हें भी मेरे द्वारा सजा दी ही जाएगी। हां एक बाप होने के नाते मै ये कह सकता हूं तू यहां से भाग जा अगर कबीले वालों से बचना है तो अभी तो किसी को खबर नही है कि तू गंधर्व विवाह करके लौटी है अगर किसी को पता चल गया कि तू राजकुमार सूरजसेन के साथ विवाह कर चुकी है तो मै भी तुझे नही बचा सकूंगा बिटिया।"
सरदार धर्म सिंह की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे।
चंचला अब और भी घबरा गयी ।वह राजमहल से इसलिए आयी थी क्योंकि राजमाता ने उसे बुलाकर समझाया था
"सूरज तो नादान है । बेटी मुझे तुम सुलझे विचारों की लगी हो तुम जानती हो राजा महाराजाओं के गुस्से को झेल पाना अच्छे अच्छे के बस मे नही है ।तुम एक बार अपने कबीले जा कर अपने पिताजी से आज्ञा ले आओ विवाह की ।तब तक मै महाराज से बात करती हूं शायद वो मान जाएं ।अगर ऐसे उन्होंने तुम को महल में देख लिया तो उनके प्रकोप से कोई नही बच पायेगा।"
वैसे सूरजसेन ने उसे मना किया था कि वह उसकी ब्याहता है उसकी अनुमति के बगैर वो कही नही जाएंगी। लेकिन फिर भी वह राजमाता की बात मान कर कबीले मे लौट आयी थी।
अब यहां भी उसके पिताजी ऐसी बात कह रहे थे कि कबीले वाले नही छोड़े गे उसे और राजकुमार सूरजसेन को ।चंचला को अपना डर नही थी उसे तो राजकुमार की चिंता सताये जा रही थी कही कबीले वाले उन पर ना आक्रमण……
वह जिस पैरों से आयी थी उसी पैरों राजमहल के लिए निकल पड़ी।पर हाय रे किस्मत…. खेमे के बाहर कालू खड़ा सारी बातें सुन रहा था उसने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया,"अरे सुनो कबीले वालों ।सुनो ये चंचला क्या गुल खिलाकर आयी है ।रियासत के राजकुमार संग भागी थी और हम सब पागलों की तरह जंगल की खाक छान रहे थे कि कही जंगली जानवर तो नही ले गया इसे। मुंह काला करके लौटी है कबीले मे।ये क्या जाने इन राजा , राजकुमारों को ये जब लड़की पसंद आ जाए तो उसे पाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है ।"
कालू के मुंह से राजकुमार सूरज के विषय मे ऐसी बातें सुनकर चंचला चीख पड़ी,"अपनी हद मे रह कालू ।तू तो उनके पांव के धूल के बराबर भी नहीं है।उनको गलत बता रहा है बकायदा ब्याह किया है उन्होंने मेरे साथ ।"
जो बात नही कहनी चाहिए थी वो बात गुस्से मे आकर चंचला के मुख से निकल ही गयी।
इतना सुनते ही कि वह विवाह कर चुकी है राजकुमार सेकालू के नथुने फूल गये वह उसे घसीटते हुए कबीले के बीचोबीच एक पेड़ के पास ले आया और उसे पेड़ से बांध कर बोला,"अब तेरा भी हश्र झुमकी की तरह होगा ।उसने भी जात बिरादरी बाहर ब्याह किया था ।देखा था उसे और उसके आशिक को कैसे तड़पा तड़पा कर मारा था हम ने । क्यों सरदार तुम्हारी भी तो रजामंदी थी उसको सजा देने मे ।देखना अपनि बेटी के समय दिल ना पसीजे तुम्हारा।"
कालू के तन बदन मे आग लगी थी क्योंकि जिस चंचला पर वो बचपने से ही अधिकार रखता आया था उसके आसपास भी अगर कबीले का कोई जवान लड़का फटकता तो बहुत बुरा हाल करता था वो उसका ।अब वही चंचला उसके सामने खड़ी किसी और के प्यार की कसमें खा रही थी और उसकी तरफदारी कर रही थी ।ये कालू के बर्दाश्त से बाहर था।
इधर सरदार धर्म सिंह भी बेबस खड़ा बेटी के साथ होने वाले हश्र को देख रहा था ।आज उसे पता उल रहा था जब झुमकी के साथ ऐसा हुआ था तब उसके पिता को कैसा लगा होगा।
कालू अपने दल के और आदमियों को ये कहकर कि तुम इसकी रखवाली करना देखना ये भागने ना पाये ।इतना कहकर कटार हाथ मे लेकर महल की ओर चल दिया।
(क्रमशः)
Barsha🖤👑
21-Sep-2022 05:33 PM
Very nice
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Seema Priyadarshini sahay
21-Sep-2022 03:30 PM
बहुत रोचक
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दशला माथुर
20-Sep-2022 11:17 AM
Behtarin rachana
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